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बिहार में मतदाता सूची संशोधन पर सियासी संग्राम: विपक्ष ने लगाया वोटर दमन का आरोप, सरकार ने दी सफाई/

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बिहार में विधानसभा चुनाव सिर पर है, ऐसे में विपक्षी दल के द्वारा मतदाता सूची के विशेष ग्रहण पुनर निरीक्षक को लेकर सियासी हलचल तेज हो गई है। जैसा कि सभी को पता है बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले सभी मतदाताओं को अपनी पहचान हेतु कुछ दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे, जिससे यह पता लगाया जा सके की सभी मतदाता भारत के ही नागरिक हो और चुनाव में किसी भी प्रकार के घुसपैठियों को शामिल होने से रोका जा सके। 

लेकिन इसी को लेकर विपक्षियों का कहना है कि इतने कम समय में बिहार मैं वोटर सत्यता की जांच संभव नहीं है। अभी बिहार ऐसे राज्य को बंद का सामना करना पड़ रहा है ऐसे में यहां के जनता अपनी पहचान को सिद्ध करने के लिए सभी कागजादों को जुटाना उसके लिए असमर्थ है। 

इन्हीं सब के दौर में  तेजस्वी यादव और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने इस प्रक्रिया को गरीबों के खिलाफ साजिश बताई हैं। इसके अलावा नेता इस प्रक्रिया पर बड़ी आरोप लगाते हुए कहा है कि यह सब एनडीए सरकार द्वारा चुनाव में धांधली का प्रयास किया जा रहा है। 

विपक्षियों का आरोप है कि इस पुनर निरीक्षण प्रक्रिया के नाम पर लाखों वेद मतदाताओं के नाम सूची से हटाए जा रहे हैं जिससे विशेष रूप से दलित, पिछड़े और प्रवासी मतदाता प्रभावित हो रहे हैं। आपको बता दे कि इन्हीं मुद्राओं को लेकर विधानसभा के अंदर और बाहर जबरदस्त प्रदर्शन भी हुए हैं।

अगर बिहार में वोटर लिस्ट में नाम छूटा, तो इसका क्या होगा प्रभाव!

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और एनडीए ने इस आप को सिरे से खारिज किए हैं, और बताएं हैं की प्रक्रिया पूरी तरह से वेद है और इसका मकसद केवल मृत, डुप्लीकेट या अवैध मतदाताओं को हटाना है, ताकि चुनाव निष्पक्ष तरीके से हो सके। सट्टा रोड दल विपक्ष पर आरोप लगाते हुए कहा है कि सभी विपक्षी पार्टियों जो इसके खिलाफ है वह विधानसभा की गरिमा को ठेस पहुंचाने का काम कर रहे हैं। चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों से पूछे कुछ सवाल-

आपको बता दे कि इस बांसवाड़ा में तेजस्वी यादव ने चुनाव बहिष्कृत करने तक की धमकी दे डाली है। वही यह विवाद चुनाव आयोग के निष्पक्षता और कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करता है। इसके लिए विपक्षों ने सीधा आरोप लगाए हैं कि चुनाव आयोग सरकार के दबाव में आकर के इस तरह के कदम उठा रहे हैं। इस पर चुनाव आयोग के तरफ से सफाई देते हुए कहां है कि यह प्रक्रिया वर्षों से चली आ रही है अतः यह एक नियमित प्रक्रिया है, इससे पहले राजीव गांधी के कार्यकाल में भी इस तरह के प्रक्रियाओं को अपनाया गया था।

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